भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय – Bharatendu Harishchandra Jivan Parichay
दोस्तों, हमारे देश में एक से बढ़कर एक महान कवियों का जन्म हुआ जिन्होंने देश को एक गौरवपूर्ण इतिहास देने का काम किया इस सूची में एक नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र का भी है।
आज हम आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन से संबंधित कई प्रकार की जानकारियां देने वाले है:-
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय
भारतेंदु हरिश्चंद्र जो एक विश्व प्रसिद्ध कवि , नाटककार, इतिहासकार और निबंधकार थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म 1850 ई ० में काणी के एक वैश्व परिवार में हुआ था। इनके पिताजी गिरधार दास भी एक बड़े काव्य रसिक व्यक्ति थे।
अपने बचपन से ही उन्होंने दोहा लिखना शुरू कर दिया था। इन्होंने बिना किसी स्कूली शिक्षा के ही हिंदी, इंग्लिश और बंगला भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हरिश्चंद्र मैगजीन और कवि वचन सुधा नाम की दो पत्रिकाएँ भी निकाली थी।
साल 1885 ई ० में 35 वर्ष की उम्र में इनकी मृत्यु हो गई थी। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदुस्तानी खड़ी बोली को हिंदी गद्य की आदर्श भाषा शैली के रूप में प्रस्तुत करने का कार्य किया था।
इन्होंने ने अपने जीवन काल में कई नाटक, निबंध, कहानी, जीवनी आदि गद्य विधाओं को जन्म देने का काम किया था। आपको बताना चाहेंगे कि उनके दोस्तों और सहयोगियों के साथ मिलकर एक बहुत बड़ा समुदाय भी बना लिया था जिसे भारतेंदु मंडल के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें हिंदी गद्य का जन्म दाता भी कहा जाता है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं
अपने जीवन काल में इन्होंने कई रचनाएं की नाटक , निबंध , कहानी , जीवनी आदि गद्य विधाएं थी। भारतेंदु हरिश्चंद्र के द्वारा रचित नाटक सत्य हरिश्चंद्र , चन्द्रावली, नीलदेवी, भारत दूरदर्शा, अंधेरनगरी, सती प्रताप, प्रेमयोगिनी और बैदिकी हिंसा हिंसा न भवति आदि है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कई इतिहास ग्रंथ की रचनाएं भी की है जिनमें कश्मीर सुषमा, महाराष्ट्र देश का इतिहास , दिल्ली दरबार दर्पण, अग्रवालों की उत्पत्ति, बादशाह दर्पण आदि है।
अगर वही काव्य ग्रंथो की बाते करें तो भारतेंदु हरिश्चंद्र के द्वारा रचित काव्य ग्रंथ प्रेमफुलवारी, प्रेमप्रताप, विजयनी विजय ,भारत बीणा, बैजयंती, सत्यसई श्रृंगार, प्रेमाश्रु वर्णन, माधुरी, प्रेम मालिका, प्रेम तरंग , प्रेम सरोवर आदि है।
इनके द्वारा रचित निबंध और आख्यान मदालसा , सुलोचना, लीलावती और परिहास पंचक आदि है। इनके द्वारा रचित अनूदित नाटक मुद्राराक्षस, कर्पूरमंजरी, रत्नावली, विद्यासुन्दर, पाखंड विडंबन , दुर्लभ बंधु और भारत जननी आदि है।
भारतेंदु जी और गद्य शैली
भारतेंदु जी के गद्य शैली के मुख्य रूप से चार प्रकार के रूप पाए जाते है जो कि परिचयात्मक शैली, विवेचनात्मक शैली , भावनात्मक शैली और व्यंग्यात्मक शैली है जिसके बारे में आगे हम आपको बताएंगे :-
- परिचयात्मक शैली
भारतेंदु जी के इतिहास और यात्रा वर्णन संबंधी रचनाओं में परिचयात्मक शैली का काफी प्रयोग हुआ है। इनकी रचनाएं सरल भाषाओं में और छोटे छोटे वाक्यों में प्रस्तुत की गई है। इस शैली में कहावतों और मुहावरों का काफी प्रयोग भी हुआ है।
- विवेचनात्मक शैली
इस शैली का इस्तेमाल गंभीर विषयों के विवेचन में किया जाता है जिस कारण वाक्य अपेक्षाकृत ज्यादा लंबे और भाषा गंभीर होती है।
- भावनात्मक शैली
इस शैली को भारतेंदु जी की प्रमुख शैली मानी जाती है जिसमें सरस मुहावरेदार भाषाओं का इस्तेमाल किया जाता है और छोटे छोटे वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। भारतेंदु जी के द्वारा रचित जीवनी और ऐतिहासिक निबंधों में आपको इस शैली का प्रयोग देखने को मिल जाता है।
- व्यंग्यात्मक शैली
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने अपनी रचनाओं में हास्य रस का भी प्रयोग किया है। इनकी गद्य भाषाओं में आपको हास्य और विनोद का भरपूर इस्तेमाल भी देखने को मिल जाता है।
काव्यगत विशेषताएं
भारतेंदु जी को प्रतिभावान व्यक्ति माना जाता था जिन्होंने कई प्रकार के साहित्य की रचनाएं की थी। इनके काव्यों में भावपक्ष और कला पक्ष की भरमार है।
भारतेंदु जी के नाटक दूर्दशा में आपको राष्ट्र के प्रति उनका असीम प्रेम देखने को मिल जाता है। इस नाटक में भारत देश के गौरव को प्रदर्शित किया गया है। इन्होंने देश प्रेम और समाज सुधार की भावना को अपने काव्यों का विषय बनाया था।
इनके द्वारा रचित नाटक अंधेरनगरी में भी आपको सामाजिक कुरीतियों और भ्रष्टाचार की भावनाओं का खण्डन देखने को मिलता है। कला पक्ष में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने अपनी कविताओं में पूर्व प्रचलित भाषाओं का ही उपयोग किया है।
ब्रज भाषा में उन्होंने कई बदलाव किए और इसे सर्वथा व्यवहार के उपयोग लायक बना दिया इनकी कविताओं में आपको उर्दू शब्द , पॉलिसी, मेडल जैसे अंग्रेजों के प्रचलित शब्दों और मुहावरों का उपयोग देखने को मिलता है।