अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ – Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh Ka Jeevan Parichay
जब बात विश्वविख्यात कवियों की हो और अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी का नाम न आये ऐसा हो नही सकता है। अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी हमारे देश के उन कवियों में से एक है जिन्होंने खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में स्थापित करने का काम किया था।
काव्यों के साथ ही साथ गद्य विधाओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कवियों में से एक अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी का स्थान है।
आज के इस लेख में हम आपको अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी की जीवनी के बारे में सम्पूर्ण जानकारियाँ देने वाले है ।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का जीवन परिचय
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी का जन्म 1865 ई ० में उत्तर प्रदेश राज्य के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा घर पर ही रहकर हासिल की थी।
इन्होंने हिंदी, संस्कृत , फ़ारसी , बांग्ला और अंग्रेजी भाषा और साहित्य का भी अध्ययन किया था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ने अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में भी अपनी सेवाएं दी थी।
इन्होंने अपने कार्य जीवन की शुरुआत मध्य विद्यालय में प्रधानाध्यापक के रूप में की थी। ये 20 सालों तक कानूनगो के पद पर भी बने रहे थे। हिंदी खड़ी बोलियों के कवियों की सूची में अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का स्थान प्रमुख है।
आपको बता दें कि हिंदी के आधुनिक काल में पहले महाकाव्य की रचना करने वाले कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ही है। इन्होंने प्रिय प्रवास नामक महाकाव्य की रचना की थी।
1645 ई ० में हमारे देश ने एक महान कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी को हमेशा के लिए खो दिया ।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी की रचनाएं
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ने कई काव्य ग्रंथ , नाटक और उपन्यास की रचना की थी। इनके प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ रसकलश, चोखे चौपदे , चभते चौपदे , वैदेही वनवास और प्रिय प्रवास है।
इसके साथ ही साथ अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ने प्रद्युम्र विजय और रुक्मिणी परिणय नामक नाटक की भी रचना की थी। इसके अलावा ठेठ हिंदी का ठाठ , प्रेमकांता और अधखिला फूल नामक उपन्यास की भी रचना की थी।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ने यह साबित कर दिया था कि उर्दू के मुहावरे , खड़ी बोली और ब्रज भाषा का इस्तेमाल करके भी कविताओं की रचना की जा सकती है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी की विशेषताएं
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध को द्विवेदी युग का प्रमुख कवि माना जाता है जो कि प्रतिनिधि कवि और गद्य लेखक थे। इनके काव्यों की प्रमुख विशेषता धर्म और संस्कृति में आस्था , लोक मंगल की भावना और देश प्रेम की भावना है।
जैसा कि हमनें आपको बताया प्रियवास खड़ी बोली का पहला महाकाव्य है और इनका दूसरा प्रमुख काव्य ग्रंथ वैदेही वनवास है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है वैदेही वनवास में श्री रामचन्द्र जी के राज्याभिषेक के बाद सीता माता के वनवास का वर्णन है।
इस काव्य ग्रंथ में राम जी और सीता माता का वर्णन लौकिक प्राणियों के रूप में किया गया है। चोखे चौपदे , चभते चौपदे और बोलचाल में स्फुट गीत है। इसके अलावा पारिजात भी स्फुट गीतों का संकलन है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी के द्वारा रचित काव्य ग्रंथ रस कलश ब्रज भाषा के छंदों का संकलन है। अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी का स्थान खड़ी बोली के महाकवियों में आता है जिन्होंने कविता को एक अलग ही स्थान पर पहुंचाने का काम किया था।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ने गद्य और पद्य दोनों ही में हिंदी भाषा की सेवा की थी। उनकी कविताओं में खड़ी बोली कि सरसता और मधुरता का संगम देखने को मिलता है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी के द्वारा रचित महाकाव्य प्रियवास को हिंदी महाकाव्यों में एक अनूठा स्थान प्राप्त है। इसकी काव्यगत विशेषताओं के कारण इसे हिंदी महाकाव्यों का माइल स्टोन भी माना जाता है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी को पुरस्कार और सम्मान
साल 1992 में अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति बने। इसके अलावा वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के 24 वें अधिवेशन के सभापति भी बने थे।
इसके अतिरिक्त अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी को 12 सितंबर 1937 में आरा की ओर से राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अभिनंदन ग्रंथ भेंट भी प्रदान किया गया था।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध को खड़ी बोली के पहले महाकाव्य प्रियवास के लिए वर्ष 1938 में मंगला प्रसाद पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।
FAQs
अयोध्या सिंह उपाध्याय की पत्नी का क्या नाम था?
अयोध्या सिंह उपाध्याय की पत्नी का नाम आनंद कुमारी था।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में हुआ।
अयोध्या सिंह उपाध्याय जी का उपनाम हरिऔध है।